भारत में प्रजातंत्र शब्द का मतलब विरोधाभाषी होता जा रहा है। चुनाव और पद मिलने के बाद जिम्मेदार आगे बढ़ रहे हैं और जनता पीछे छूट रही है। ऐसा सालों से चल रहा है। सत्ता हासिल करने के बाद जनता की भावनाएं नेताओं के लिए कोई महत्व नहीं रखती है। इसके कारण समाज भी पिछड़ता जा रहा है। पहले के नेता समाज में मूल्यों के लिए जीते थे और अब इसके मायने बदल रहे हैं। इसके कारण युवाओं को इसके प्रति ध्यान देना बेहद जरूरी हो गया है।
हर छोटी और बड़ी घटनाओं पर मंथन करें तो सामने आता है कि ऐसा जिम्मेदारों के समाज से कट जाने के कारण होता है। यह भी हैरानी की बात है कि शिक्षा व्यवस्था में प्रजातंत्र जैसी बातों को काफी कम महत्व दिया जाता है। इसके कारण लोगों इसके प्रति ज्ञान का अभाव भी समाज को कमजोर बना रहा है। इसके लिए सबसे जरूरी है कि वे युवा जो नई सोच रखते हैं। समाज को आगे लेकर जाने की इच्छाशक्ति रखते हैं और ईमानदारी से वह सबकुछ करने की हिम्मत रखते हैं, जिससे समाज में बदलाव आए उन्हें उन्हें आगे आना चाहिए। युवा ही राजनीति की दिशा बदल सकते हैं। बेहतर शिक्षा प्राप्त और ज्ञानवान यूथ को इसके प्रति सोचना होगा।
सत्ता का मोह छोड़कर जनता और समाज के हितों के बारे में सोचना होगा। इसके बाद समाज में बदलाव निश्चत होना तय है। कुछ युवाओं का ध्यान अपनी पढ़ाई या प्रतियोगी परीक्षाओं पर रहता है, इसलिए वे राजनीति में नहीं जाना चाहते। आज भी अच्छे घरों के उच्च शिक्षित युवा राजनीति में अपना करियर बनाना चाहते हैं। कई विसंगतियां जो हमें देश की राजनीति में दिखती हैं तो उन्हें दूर करने के लिए देश के युवाओं को आगे आना होगा। देश की राजनीति को सुधारने के लिए पढ़े-लिखे युवाओं को राजनीति में आना बेहद जरूरी है।